कविता..- उम्र........रवीन्द्र कुमार

कविता..- उम्र........रवीन्द्र कुमार

 

उम्र........

 

 

लड़खड़ाकर चलने का शौक नहीं है मुझे

ये जो उम्र है ना वो मेरे साथ चलती है।।

 

कभी अचानक से थक जाऊं मैं

मैं उम्रदराज हो गया हूँ ये बताती है।।

 

ऐ जिंदगी तूने बहुत कुछ दिया मुझको

ये उम्र की सीढ़ियां हैं डगमगाती हैं।।

 

आंखों में चश्मा और हाथों में लाठी

ये जिंदगी ऐसे ही चलती जाती है।।

 

थे कभी गुलजार इश्क के बंगले।।

अब सिर्फ खिड़कियों से हवा आती है।।

 

सोचने का तौर तरीका भी अब बदल गया

अब ना वो आतीं हैं ना याद आती है।।

 

समय कैसे गुजरता है पूछती है उम्र मेरी

अब मेरी उम्र तो बच्चों से बतियाती है।।

 

समय का क्या है भरोसा खुदा ही जाने

जिंदगी देने वाले तेरी याद आती है।।

                    ...........

                                               रवीन्द्र कुमार


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